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रौशें
उसने कहा, " बैठ जाओ, तुम किसी लायक नहीं हो।"
मैं बैठ गयी। बात उसकी मान गयी
अपनी क़ाबिलियत को, उसकी तराज़ू में माप गयी
ख़ुद से नावाक़िफ़…
इस बात से ना-मालूम
कि रेशे रूह के रौशें बन रहे थे
कि जिल्द से मेरी, फूल खिल रहे थे
आँचल
अगस्त, २०२०
बॉम्बे
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