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राख
जीते जी मेरे मेरा, जीना बवाल था मगर
मरना भी मेरे लिए, कहाँ आसान हो गया
निर्भया का नाम दे, एक इनाम दे दिया
जंग चाही थी क्या मैंने, पूछा भी नहीं गया
इन्साफ की उम्मीद में, क्या जवाब माँगूँ मैं ?
मेरी तो राख पर भी, खड़ा सवाल हो गया
आँचल
अक्टूबर, २०२०
बॉम्बे
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