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तुम
भरे जंगल का चढ़ावदार रास्ता, पीठ पर कुछ १० किलो का बैग
तेज़ साँसें, हलके क़दम
राशन करके पानी का एक एक घूँट धीरे धीरे पीना
फिर पहाड़ की चोटी दिखते ही सारा दर्द भुलाकर, आखिरी सौ क़दमों में फुर्ती लाना
चोटी पर चढ़ कर, पीठ का बोझ पटक कर,
हाँफते हाँफते कमर पर दोनों हाथ रखकर एक लम्बी साँस लेना
उन वादियों को देखकर, उस नज़ारे में भीग कर, जो मुस्कुराहट चेहरे पर आती है न
तुम्हें देखकर वही मुस्कराहट मेरी नम आँखों में आती है
एक लम्बे थका देने वाले ट्रेक की चोटी पर पहुंच कर लेने वाली, वो गहरी साँस हो तुम ।
आँचल
सितम्बर, २०२०
बॉम्बे
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