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गद्दा
आज सुबह तेज़ पीठ दर्द के साथ उठी।
"यह गद्दा अब नहीं रहा काम का
इतना महँगा और सिर्फ तीन महीने पुराना?
सुनो, दुकानें खुलते ही पहली चीज़ गद्दा चाहिए
और इस बार थोड़ा देख परख के ही लाईये;
दिन भर मेहनत करके पत्थर पर थोड़ी सोना है
मैं कुछ नहीं जानती, अब बस मुझे नया नरम गद्दा लेना है।"
दस पंद्रह मिनट पीठ पकडे यूँ ही कराहती रही
"रात न सो पायी, पूरा दिन कैसे गुज़रेगा", कह कह कर चिल्लाती रही।
फिर "दीदी, नाश्ता लग गया है", कहती मीना कमरे में आयी
"सुन, आज जूस फिर से तो नहीं भूली न", मैं उस पर भौराई।
"आज दर्द भी है, थोड़ी सुस्ती भी, अब और परेशानी नहीं चाहिए।"
"अरे दीदी, सब है, आप बस आ जाईये।"
कमरे में अपने पसंदीदा नीले सोफे पर बैठकर ,
"सुनो, याद से सबसे अच्छे गद्दे का ब्रांड ढूंढ़ना", फिर से चिल्ला कर
टीवी रिमोट का बटन दबाकर
ठंडे जूस का गिलास उठा कर
पहली ख़बर सुनी -
16 प्रवासी मज़दूर 850 किलोमीटर दूर अपने घर पैदल लौट रहे थे,
रात को थक कर रेलपटरी पर ही सो गए,
सुबह सवा पाँच बजे एक मालगाड़ी वहाँ से गुज़री;
मज़दूर संभल न पाए, सब मर गए ।
जूस का गिलास…अभी भी वहीँ टेबल पर रखा है
आज सुबह से मैं गद्दे को और मेरा गद्दा मुझे ताक रहा है
आँचल
मई, २०२०
बॉम्बे