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गौरैया चिड़िया
पिछले शनिवार की बात है, सुबह की चाय लेकर खिड़की पर बैठी ही थी, जब एक चिड़िया दिखी
वही लुप्त होती गौरैया चिड़िया, जाने कहाँ से मेरी खिड़की पर आकर बैठी
सफेद रंग, भूरे पंख, यह बड़ी बड़ी आँखें और गर्दन के ऊपर एक लकीर काली
ख़ास लग रही थी और कुछ जानी पहचानी
पास जाती तो उड़ सकती थी, इसलिए परदे के पीछे से उसे देख रही थी
ज़्यादा नहीं, बस दो तीन मिनट ही होगी खिड़की पर मेरी
लेकिन उड़ी जब, मुझे भी अपने संग ले उड़ी
आप सोच रहे होंगे एक चिड़िया के लिए इतनी हलचल
"उठ जाओ बच्चों, देखो बाहर चिड़ियाँ भी ची-ची करने लगीं ", बचपन में हर सुबह पापा हमें यही कहकर ही उठाते
उनकी रोटी के कुछ टुकड़े हमेशा चिड़िया के नाम के होते
रोज़ खाना खाने के बाद उनकी चूरी बनाकर छज्जे पर डाल आते
यह चिड़िया मुझे उड़ा ले गयी पापा की उन रोज़ की सहज आदतों में
दिल्ली में हमारे घर के पिछवाड़े पापा का एक सब्ज़ियों का बाग़ था
नीम का पेड़, सफेदे का पेड़, कड़ी पत्ता, पुदीना, टमाटर, तुलसी, गोभी, मूली, लौकी, प्याज - उस छोटे से बाग़ में, क्या क्या नहीं उगाया था
माँ ने भी वहीँ कोने में एक छोटा सा मिट्ट्टी का तंदूर बनवाया था
यह चिड़िया मुझे उड़ा ले गयी उस तंदूर में घंटो पकती माँ छोलों की दाल, उस प्यार से सींचे हुए बाग़, उस नीम की छाँव में
रात को अक्सर बिजली जाती थी
और हम सब भाग लेते थे अपनी अपनी छतों पर अपने चादर, गद्दे, तकिये लेकर
पर सोता कौन था? पूरा मोहल्ला छत पर होता था
यह चिड़िया मुझे उड़ा ले गयी उन चांदनी रातों में, रोज़ की लगने वाली महफिलों, उन हंसी ठहाकों में
गर्मियों में शायद ही कोई दिन बिना आम खाये गुज़रता था
आम का लालच देकर एक आध रोटी ज़्यादा खिला देना, यह काम पापा का था
आज भी "मौसमी फल और सब्ज़ियाँ खाओ, बच्चे", कहते पापा नहीं थकते
हाफुज़ तो खाती रहती हूँ मगर यह चिड़िया मुझे उड़ा ले गयी उन मीठे दशहरी वाली रातों में
महीने के आखिरी दिन माँ सबकी पसंद के अलग अलग बिस्कुट लाती थी
हमारे लिए बादाम काजू वाले, पापा के लिए उनकी पसदं के आटे के
और रात को खाने में पनीर बनता था। भाई, तनख़्वाह मिलने पर जश्न तो होना ही था
यह चिड़िया मुझे उड़ा ले गयी उन छोटी छोटी वजह, कभी बेवजह ही होने वाली दावतों में
मैं अपने ख़्यालों में ही थी, जब अचानक पापा का मैसेज आया
"बेटा, पिछले २० दिन से यह रोज़ छत पर आ रही थी
जाने क्या बात है, तीन दिन से ग़ायब है
काफ़ी अलग दिखती थी, इसलिए मैंने दूर से तस्वीर ली
तुम्हें भेज रहा हूँ, देखो है न अलग सी, बिलकुल निराली"
और फिर तस्वीर आयी दाना चुगती एक गौरैया चिड़िया की
सफेद रंग, भूरे पंख, यह बड़ी बड़ी आँखें और गर्दन के ऊपर एक लकीर काली।
मेरी खिड़की पर अब मैंने भी रोटी की चूरी बना कर रखी है
पापा की दिल्ली वाली चिड़िया बॉम्बे आयी है, अगली बार उसकी ख़ातिरदारी जो करनी है।
आँचल
मई, २०२०
बॉम्बे